इसके सेवन से योनि में जलन, योनि में घाव एवं सूजन, सब प्रकार के प्रदर, गर्भाशय पर सूजन, गर्भाशय का सरक जाना, योनि मार्ग से किसी प्रकार का स्राव होना आदि सभी नारी रोग दूर होते है।
लाभ
इस के सेवन से योनि रोग, योनि में जलन, योनि में घाव एवं सूजन, सब प्रकार के प्रदर, गर्भाशय पर सूजन, गर्भाशय का सरक जाना, योनि मार्ग से किसी प्रकार का स्राव होना आदि सभी नारी रोग दूर होते हैं। पाठा, जामुन और आम की गुठली की गिरि, पाषाण भेद, रसौत, अंबष्ठा, मोचरस, मजीठ, कमलकेसर, नागकेसर (केसर की जगह), अतीस, नागरमोथा, बेलगिरि, लोध, गेरू, कायफल, काली मिर्च, सोंठ, मुनक्का, लाल चन्दन, सोना पाठा (श्योनाक या अरलू) की छाल, इन्द्र जौ, अनंत मूल, धाय के फूल, मुलहठी और अर्जुन की छाल।
मात्रा
एक छोटी चम्मच (मसाले वाली), सुबह शाम खाना खाने के बाद, हलके गर्म दूध, शहद या घी के साथ लेना चाहिए।
परहेज़
इसमें आपको तली हुई चीजों, लाल मिर्च, चावल, खटाई, नींबू, चटनी, मौसमी, अचार वगैराह के परहेज रहेंगे!
आयु वर्ग
इस दवा को 15 से लेकर 65 वर्ष तक कि आयु में कोई भी स्त्री ले सकती हैं !
हिदायतें
महिलाओं में प्रग्नेंसी के वक़्त या किसी भी प्रकार के शारीरिक ऑपरेशन के तीन महीने तक इस दवा का सेवन ना करें !
ध्यान दे ! हमारी समस्त दवाएं अपने प्रभाव और परिणाम से आयुर्वेद की कसोटियों पे परिपूर्ण हैं, जिनके नियमित व उचित मात्रा में उपयोग से शरीर में किसी प्रकार का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है ! दवा के इस्तेमाल से पहले उसके सेवन कि विधि, मात्र और परहेज़ एक बार ध्यान से पढ़ लें !